Saturday, February 28, 2009

मोहल्ला महोत्सव

व्यंग्य:
मोहल्ला महोत्सव
- विनोद साव

खिड़कियों से हवा का झोंका आया तो कमरा मोहल्लाछाप गन्ध से भर गया जिसमें घूरे और नाली के संयुक्त गठबन्धन की गन्ध स्पष्ट थी। गठबन्धन की राजनीति से मोहल्ले के घूरे और नाली भी अपने आपको नहीं बचा पाए थे। इसलिए कभी शहर का सबसे खूबसूरत माना जाने वाला यह मोहल्ला भी उस क्षुद्र राजनीति का शिकार हो गया था जिसकी बजबजाती गन्दगी पूरे देेश की व्यवस्था में सड़ान्ध पैदा कर रही है।
इस प्रदूषण के भभके से घर के सदस्यों को बचाने के लिए मैंने खिड़की बन्द करने की कोशिश की तो बाहर से किसी के गाने की आवाज आई। थोड़ी देर में वह गायक कलाकार सशरीर ड्राइंगरु में घुस आया। मैंने देखा वे मोहल्ले के समाजसेवी साहूजी हैं। उन्होंने अब भी अपना गाना जारी रखा ’मेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद.....।’
मैंने कहा ’आप गाते हैं तो ठीक से गाइए .. और तेरी गली को मेरी गली मत बतलाइए।’
वे बोले ’जैसे देश और उसकी राजनीति में उल्टी गंगा बह रही है। वैसे ही हमारे मोहल्ले की नाली भी अब उल्टी बह रही है। सीधी बहने वाली नाली अपने रास्ते जाती है पर जब वह उल्टी बहती है तो सड़क पर आ जाती है। गलियों में फेैल जाती है। जब बजबजाती नाली की अंतहसलिला उल्टी धार बहेगी तो मोहल्ले में रहने वालों का गाना बजाना भी उल्टा ही चलेगा। इसलिए हम गा रहे हैं कि ’मेरी गलियों में ना रखेंगे कदम आज के बाद ..।’
मैंने कहा ’आप इस उल्टी गंगा का राज कहिए?’ तो वे बोले कि ’मतलब साफ है। मोहल्ले की सारी नालियाॅ आज सड़क पर आ गई है। सब तरफ नालियों का कालाचिट्टा पानी बह रहा है उसकी बदबू फैेल गई है। मेरी गली में चलकर आप देखें तो वहाॅ पाॅव रखने की जगह नहीं है। ऐसे में हमने गाना बिल्कुल ठीक गाया है।’
’तो अब आपका क्या विचार है?’ मैंने टोह ली तो वे बोले ’जब सबकुछ उल्टा पुल्टा चल रहा है तो हम समझते हैं कि चलिए हम सब अपने मोहल्ले की गन्दगी को ही हाईलाईट करें। जिनके पास अच्छा अच्छा है तो अपने अच्छे का प्रदर्शन कर रहे है। लेकिन हमारी किस्मत में कचरों का पहाड़, नालियों की गंगाजमुना, अन्धेरों का साम्राज्य, सड़कों पर चाॅंद की तरह दाग व गड्ढे, धूल गुबार का वैभव और लाउडस्पीकरों का शंखनाद है। मैं कहता हूं कि यह कीर्तिमान भी क्या कम है। शहर में गन्दगी का यह आलम कितने शहरों को मयस्सर है। अपनी बदनसीबी को ही खुशनसीबी मान लें जो ये दिन देखने को मिल रहे हैं।’
अपने मोहल्ले का जीवन्त चित्र खींच लेने की उनकी कला से मैं प्रभावित हुआ। उनका हौसला बढ़ाते हुए मैंने कहा ’बहुत खूब.. तो फिर क्या सोचा है आपने.. हो जाए!’
’हो जाए ! इस बार तो मोहल्ला महोत्सव हो जाए।’ वे उत्साह से भर उठे ’सेलीब्रेट करने के लिए अपने पास कोई कम आइटम नहीं है। नया साल अभी ज्यादा पुराना नहीं हुआ है॥ बसंत की बयार बह रही है और होली हुड़दंग भी सामने है। मोहल्ले की गन्दगी को हम बढचढ़कर बतावेंगे तो कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा।’
अब बिना रुके एक सांस में वे अपनी योजना बताने लगे ’फटे पुराने कागजों, मैले कुचैले कपड़ों, टीन टप्परों, घास फूसों, गोबर और कीचड़ों को मिलाकर हम मोहल्ले के बीच चैराहे पर मिलीजुली सरकार की तरह एक पन्डाल खडा करेंगे जो किसी महोत्सव में बनाए गए आधुनिक ’हट’ की तरह होगा। यह मोहल्ला महोत्सव का मुख्य आयोजन स्थल होगा। इस आयोजन स्थल पर आने वाले अतिथियों को पहले मोहल्ला दर्शन करवाया जावेगा। उन्हें मोहल्ले के सारे डम्प स्टेशनों का दर्शन और गलगलाती नालियों व शौचालयों से सीधा साक्षात्कार करवाया जाएगा।’
’फिर मुख्य समारोह में आप मोहल्ले को सबसे ज्यादा गन्दा करने वालों, सबसे ज्यादा कचरा फैेलाने वालों और सबसे ज्यादा शोर प्रदूषण करने वालों को पुरस्कृत कर सकते हैं। उन्हें गन्दगी गणमान्य, कचरा कुमार और नाली नरेश जैसे अलंकरणों से सम्मानित कर सकते हैं। इस तरह से मनाएंगे आप मोहल्ला महोत्सव।’ मैंने राह दिखाई।
’ये हुई ना बात..।’ कहकर वे उल्लास से भर गए और कहा कि ’आपने मेरे मन की बात कह दी।’ अब जाता हूं मैं उत्सव की तैयारी में और मोहल्ले वालों से लेता हूं चन्दा मोहल्ला महोत्सव के लिए।’ वे किसी पार्टी के उत्साही कार्यकर्ता की तरह बाहर हो गए मोहल्ला महोत्सव की तैयारी में।

विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग 491001 मो. 9907196626

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